महगाई की मार पर आसूं क्यूँ ?
आज देश की जनता महगाई पर आंसू बहा रही है ! बेचारी जनता !लाचार जनता ! कोई छाती पीट कर रो रहा है, तो की सुबक रहा है, कुछ लोग धरने पैर हैं तो कुछ तख्तयीय ले कर घूम रहे हैं कोई ज़हर खाने की बात कर है और कुछ कहते हैं की भाई कुछ आपराध कर लो जेल में रोटी तो मिल जायेगी न
वाह भैया आप की अपनी सरकार है आम लोगो का साथ कांग्रेस के हाथ तो भाई आम लोंगो क साथ तो ये होना हे था क्यूंकि वो आम हैं शीला जी की लीला देखिये रोज आप को कुछ ना कुछ चीजो क दाम बढे मिलेंगे और आप को आश्वासन मिलेगा की राजधानी को विश्व स्तरीय बनया जारहा है तो भैया आप को रहने है अगर विश्व स्तरीय शहर में तो कुछ तो कुर्बानी देनी होगी और इस शहर में में आम लोग थोड़े रहेंगे उस लेबल के लोग रहेंगे अभी जो शीला जी का फरमान जारी हुआ था की भिखारियों को बहार करो! पता नहीं कहाँ से न्यायालय को
खबर हो गयी तो भिखारी को निकलने का सपना सपना हो गया ! शीला जी का लेकिन आप को पता नहीं है भाई जो लोग ५००० तक तनख्वाह पते हैं वो भी उन भिखारियों से कम नहीं है जो आदमी अपने आमदनी का २००० रुपये किराये में दे देगा २००० मकान का किराया और बताईये की १००० रूपये में कौन सा भोजन एक महीने का होगा
१०० रूपया किलो दाल बिक रही है
दाल थाली से गायब सब्जी में आलू २८-३० नहीं खा सकते प्याज ३४-४० सूंघ कर कम चलना और भाई आटा १७- २० ! चल सकता है सिर्फ नामक रोटी व् नमक भाई वो भी इस १००० रूपये में तो महीने
भर तो भगवन हे मालिक हैं भाई आप शहर छोड़ कर भाग जाओ आप को निकलने की ये नीति है! आप जाओ बस! भाई कांग्रेस के लोंगो को तो हवाई जहाज में भी भेड़ बकरी हे नज़र आती है
तो आप तो रोड पर है आप खुद हे समझदार हैं आप आपना क्लास तय कर लीजिये की आप की क्लास क्या हैं लेकिन आप लोंगो को इस तरह से सरे आम रोना नहीं चाहीये भाई आप तो लोग तो हे हो जो सरकार के लिये नार्रे ladayee झगडे दंगा फासाद तो अपनी आवाज़ बुलंद करिए आपने नेता के पास जाईये उनके पास भाई जब सरकार बनी थी तो खूब ठुमके लगई थे आप ने आज सरकार ठुमके लगा रही है मज़ा लीजीये भाई आप को २५ का देसी पव्वा दिया था भूल गये क्या यार ५ साल के एक पव्वा कम है क्या और आप लोंगो का रोना गाना एक नौटंकी हे मुझे लगता है फिर पांच साल बाद देसी की जगह अंग्रजी मिल जायेगी सर्रे गमो की एक दवा है सब भूल जायेगा अब आप ही तय कर लीजिये आप को
Wednesday, November 4, 2009
महगाई की मार पर आसूं क्यूँ ?
Subscribe to:
Posts (Atom)