Friday, May 22, 2009

मलाई कौन खायेगा ?

ये देखिये सत्ता का खेल अभी सरकार बनी नहीं की मारा मारी शुरु और रुठने मनाने का दौर। अब देखिये यूपीए के महत्वपूर्ण करुणानिधि को जो सरकार पर तनिक भी करुणा दिखाने के मूड मे नजर नहीं आते हैं ।उन्होने कोप भवन का सहारा लिया है सरकार से सौदाबाजी के लिए ।सपरिवार जीत कर आये हैं देश के सारे महत्वपूर्ण मंत्रोलय पर उनकी गिद्ध दिृष्टि है लेकिन बेचारे विवश नजर आ रहें हैं चारो ओर बाजों का पहरा जो है आसमान से ही शिकार कर ले जा रहें हैं। ममता जी जो सरकार के प्रति ममता दिखा रहीें है उसके पीछे भी वजह बंगाल की कुर्सी है सो वह थोड़ी नरमी बरत रहीं है । फारुख साहब भी सरकार से खफा हैं कारण यहां भी कुर्सी ही है फारुख साहब को भी महत्वपूर्ण विभाग की दरकार है सो नहीें मिलता देख खफा हैं। सारी मारा मारी मलाई के लिए है अब देखिये किसको मलाई मिलता है ?

Monday, May 18, 2009

गाधी की आंधी

वाह भाई वाह सारे पत्ते सफा हो गये ऐसी हवा चली काग्रंेस की आधी में विपक्ष का पूर्ण रुप से सफाया हो गया है। वेटिग प्रधानमं़त्री ने संन्यास की ओर कदम बढ़ा दिये हैंै । लाल हलाल हो चुका ह,ै लालू की लालटेन गुल हो चुकी है, पासवान जी तो लुटिया ही डुब गयी । मुलायम को फिर वनबास का संदेश मिला है । अमर दरबारी राग गा रहे हैं लेकिन सुनने वाला कोई नही है जनता दल यूनाइटेड अपने आप पर काफी इतरा रहा है लेकिन उसकी भी कोई उपयोगिता बचीहै । राहुल गाधी की आधी में सब हवा में उड़ गये हैं।

Friday, May 15, 2009

खुला खेल फर्रुखाबादी

खत्म हुआ चुनावी खेल और चल पड़ी जोड़-तोड़ की नई रेल । पहले आओ पहले पाओ का नारा दिया जा रहा है। कोई भोज के बहाने तो कोई गुप्त ठिकाने पर नेता प्रमुखों के साथ कोई खिचड़ी तो कोई मीठी खीर पका रहा है । भाई चुनाव था उल्टा सीधा बोलना पड़ा वैसे तो हम सब एक ही थाली के हैं । यह सुक्ति सुत्र बड़े कददावर नेताओं के हैं । एक सांसद की कीमत भी तय हो चुकी हैै बस अगर थोक के भाव लेना है तो कुछ कम में मामला बन सकता है।

Friday, May 1, 2009


बहकते कदम

बहकते कदम, छूटता संस्कार

हर तरफ आलोकित होता
मनुष्य का कलुषित व्यवहार।
जनक-जननि नहीं प्यारे
प्यारी है प्रेयसी
भाई-भाई का बन गया विद्वेषी।
संस्कृति का होता ह्रास
समाज का होता परिहास
चारो तरफ छाया तीमिर
नहीं कहीं दिवा की आस।
चहुंदिश परलक्ष्ति ज्वाल-द्वेष
जन जन में पूरित घृणा क्लेश
नैतिक मूल्यो का हो रहा पतन
हिंसा का होता है अभिषेक।
मानवत जड़ता में परिवर्तित
प्रेम भाव में स्वार्थ मिश्रित
दुषित हो गयी संपूर्ण श्रृष्टि
लोभ की हो रही तेज वृष्टि।
इसमे भीग रहा संपूर्ण संसार
चारो तरफ फैला भष्ट्राचार भष्ट्राचार।