बहकते कदम
Saturday, February 5, 2011
नरेंद्र पर निशाना
यूपीए सरकार की सबसे बड़ी मंशा यही है कि किसी भी मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फांसा जाए..लेकिन उनकी कोई भी चाल कामयाब नहीं हो पा रही है ...नरेंद्र मोदी को जिस तरह से गुजरात के लोगों ने पसंद किया है उसको देखते हुए तो लगता है कि दशकों तक मोदी गुजरात में कायम रहेंगे ..और इस सच्चाई को कांग्रेस पचा नही पा रही है ..एक बात तो तय है कि वर्तमान में बीजेपी का सबसे ज्यादा पसंदीदा चेहरा है तो वो नरेंद मोदी का ..नरेंद्र मोदी के गुजरात विकास मॉडल के जरिये बीजेपी केंद्र में सत्तारुढ़ होना चाहती है लेकिन अकेले बहुमत के आंकड़े तक पहुंचना काफी दूर नज़र आ रहा है ..फिलहाल केंद्र सरकार तो महंगाई और भष्टाचार के मुद्दे पर चौतरफा घिरी है एसे में उसका भी 2014 में सत्ता वापसी का मंसूबा पूरा नहीं होता नजर आ रहा है ..राहुल राज का पतन शुरु हो चुका है..एसे में कांग्रेस की मुश्किलें काफी बढ़ गई है..सहयोगी दलों के बोझ तले मनमोहन दबे हुए है..वो भी सिर्फ प्रधानमंत्री पद के लिए काम कर रहे हैं न कि देश के लिए ...चोरों के बीच में रहने वाले व्यक्ति को भी लोग चोर समझते हैं एसे में प्रधानमंत्री पर प्रश्नचिंन्ह खड़ा होना लाजमी है...घोटालों से घिरी सरकार को नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा कर अपने को साफ पाक घोषित करने की जुगत में लगी है..लेकिन पिछले 9 वर्षों में उनकी कोई भी चाल कामयाब नहीं हो पाई है ..
Saturday, January 29, 2011
राहुल की राजनीति
हालिया राहुल गांधी का बयान कि ‘राजनीतिक ढांचे में घुन लग गया है और हमें इसे बदलना होगा एसा प्रतीत होता है कि गंदगी के महासागर में खड़े होकर और उसको साफ़ करने की बातबात कर रहे हैं राहुल ... राहुल गांधी एक चतुर और पेशेवर राजनीतिज्ञ की तरह अब बयान बाजी करने लगे हैं..जिस राजनैतिक व्यवस्था को बदलने की बात राहुल गांधी कर रहे है वास्तव में सबसे ज्यादा उनके पार्टी के लोगों ने राजनीति को काफी गंदा कर रखा है.... राहुल गाधी को इस देश के गरीब की सबसे ज्यादा चिंता है इसी लिए तो वो गरीबों के घर रातें गुजारते हैं लेकिन सिर्फ मीडिया को मैनेज करके शोहतरत का ढिंढोरा पिटने के लिए.... वास्तव में राहुल गांधी की सोच अपना राजनैतिक उल्लू सीधा करना है वो भी इस देश की जनता को भावनात्मक रुप से बहलाकर ..मेरा मानना है कि इसमे राहुल गाधी कम जनता ज्यादा जिम्मेदार है ..जनता को जो पसंद वही किरदार तो अदा कर रहे है राहुल गाधी फिर राहुल को ज्यादा दोषी नहीं ठहराया जा सकता है..जनता को महगाई से ज्यादा सम्प्रदायिकता की चिंता है..इसी लिए तो वो भूखे पेट सोना पसंद करती है लेकिन वो सांम्प्रदायिकता से कोसो दूर रहना चाहती है सही भी देश मे अमन और चैन बरकरार रखने की कोशिश तो जनता हमेशा ही करती है लेकिन ये राजनैतिक दलों के चुंगल से नहीं आजाद हो पाती हैं..एसे में राजनैतिक दल हमेशा से जनता को अपने उंगली पर नचाते आ रहे है...वर्तमान मे राहुल गांधी इस फन के सबसे माहिर खिलाड़ी साबित हो रहे हैं और जनता को अपने इशारों पर नचाने में काफी महारत भी हासिल कर ली है..हो भी ना क्यों उनकी रगो में भी तो राजनीति को पूरोधाओं का खून जो दौड़ रहा है एसे में राहुल को विशेषज्ञता मिलना स्वाभाविक है..लेकिन एक बात तो तय है कि राहुल का जादू सिर्फ तथाकथित युवा जो शहरों में कित्रिम खाद पानी से तैयार होते हैं उनके लिए ग्लैमर ही सब कुछ है वो शाहरुख और राहुल को एक ही चश्मे से देखते हैं..राहुल गांधी की राजनैतिक सोच उनके लिए मायने नहीं रखती है..बल्कि उनका बैचलर होना और ग्लैमरस लूक ही उनको भाता है ..और कांग्रेस को लगता है कि राहुल गांधी के पीछे इस देश की आधी आबादी दिवानी है..शायद वो उनकी भूल है..धीरे-घीरे अब राहुल का यूपी-बिहार आदि राज्यों में चमक फीकी पड़ती जा रही है ..माना जाता है कि यूपी औऱ बिहार राजनीति की पाठशाला है मुझे भी इस कहावत में काफी दम नजर आता है..जहां पर बच्चे जन्म से राजनीति का ककहरा सीखते हैं वहां पर ग्लैमर के भरोसे लोगों को अपने जाल में फसाना आसान नहीं होगा...राहुल को अगर वास्तव में राजनैतिक गंदगी साफ़ करने का बीड़ा उठाया है तो पहले इसकी शुरुआत अपने घर से करें
Tuesday, January 25, 2011
तलवार पर वार
राजेश तलवार पर किया गया हमला वास्तव मे राजेश तलवार पर हमला नहीं है बल्कि भारत की न्याय व्यवस्था पर हमला है जांच एजेंसियों पर हमला है .वर्तमान व्यस्था से आक्रोशित एक युवक उसे ही उस नृसंश हत्या का आरोपी मान लेता है जिसकी बेटी आरुषी थी. शक की सुई जरुर राजेश तलवार के इर्द गिर्द घुम रही है लेकिन किसी भी जांच एजेंसी ने तलवार को दोषी नहीं ठहराया है एसे में अविश्वास की कोख से आक्रोश का जन्म होता है और बहुत ही भयानक शक्ल अख्तियार करता है.. हमला करने वाला युवक मानसिक रोगी है लेकिन कहीं न कही से वह राजेश तलवार को आरुषि का हत्यारा मान चुका था जिसकी परिणिति तलवार पर जानलेवा हमले के शक्ल मे सामने आया.. लगता है मानसिक रोगी उत्सव ने शाहंशाह फिल्म से प्रेरणा ली है ..इससे पहले वह रुचिका मामले के आरोपी एपीएस राठौर पर भी हमला कर चुका है ..एपीएस राठौर ने तो उत्सव के खिलाफ कोई एफाईआर नहीं कराई एसे में उत्सव को बहुत जल्द ही जमानत मिल गई ..शायद इसी के चलते उसे शह मिलती गई और वो खुद को न्याय देवता मान बैठा ..गौरतलब है कि उत्सव ललित कला में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से गोल्डमेडलिस्ट छात्र रहा है ...जो हाथ कुची और रंगो से भरे हुए थे आज व्यवस्था की चोट ने उन हाथों में खंजर थमा दिया है ..ये एक विडंम्बना ही है कि उसने जिन लोगों पर हमला किया कहीं न कही से वो कानून के घेरे में रहे हैं लेकिन कानून की गिरफ्त से काफी दूर..अब सवाल उठता है कि क्या किया उत्सव को केवल एक मानसिक रोगी मानकर उसे मानसिक चिकित्सालय में इलाज के लिए भेज दिया जाए या फिर जेल की सलाखों के पीछे..ये काम भी उन्ही संस्थाओं को करना है जो पहले से ही सवालों के घेरे में है ..
Saturday, January 8, 2011
आंसू अब बनावटी लगते हैं
आंसू अब बनावटी लगते हैं
आखों पर सजावटी लगते हैं
आसूओं में अब धार नहीं
वो पहले की रफ्तार नहीं
जब एक बूंद टपकती है लोलों पर
तो खूबसूरत नज़र आती है
उसके दर्द में भी जरुरत नज़र आती है
आसूओं का मौसम होता था
लेकिन वो कित्रिम हो गए हैं
जरुरत के हिसाब से बह रहे हैं
माफ़ किजिएगा
बदल गया है मेरा पैमाना
आसूओं की आड़ में
सिर्फ झूठ को छिपाना
जी भर के झूठ बोलिए
पकड़े जाने पर रो लिजिए
रोने पर आंसू निकल आएंगे
आप पकड़े जाने से बच जाएंगे
आप लोगों से यही है गुजारिश
आसूओं को मौसम के हिसाब से
पलकों को भिगोने दिजिए
इतनी ज्यादा भी कित्रिम वर्षा
ना किजिए
जीवन में भी ग्लोबल वार्मिग
आ जाएगा
जिस दिन आसूओं की जरुरत होगी
वो पलकों पर नहीं आएगा
मानवता मौन पड़ी है
मानवता मौन पड़ी है
शुन्यता द्वार खड़ी है
आहों की आहट पर
कान बहरे हैं
संवेदना पर
क्रुरता के पहरे हैं
मानव मानवता से मुख है मोड़ता
अपने आपको अपने से तोड़ता
वो टूटा है लेकिन
अभिमान है कि वो जुड़ा है
लेकिन असलियत तो ये है कि
उसका धड़ कहीं और
सर कहीं और पड़ा है
एक बेटी की पुकार
बहन की चित्कार
पर जो है मौन
जो बदहवास है
आदमी नहीं वह
सिर्फ़ जिंदा लाश है
अब तो चारो ओर लाशें
नजर आती हैं
जो हर घर को श्मशान बनाती हैं
लगता है ये शहर लाशों का हो जाएगा
फिर ये मुल्क मशान कहलाएगा
शुन्यता द्वार खड़ी है
आहों की आहट पर
कान बहरे हैं
संवेदना पर
क्रुरता के पहरे हैं
मानव मानवता से मुख है मोड़ता
अपने आपको अपने से तोड़ता
वो टूटा है लेकिन
अभिमान है कि वो जुड़ा है
लेकिन असलियत तो ये है कि
उसका धड़ कहीं और
सर कहीं और पड़ा है
एक बेटी की पुकार
बहन की चित्कार
पर जो है मौन
जो बदहवास है
आदमी नहीं वह
सिर्फ़ जिंदा लाश है
अब तो चारो ओर लाशें
नजर आती हैं
जो हर घर को श्मशान बनाती हैं
लगता है ये शहर लाशों का हो जाएगा
फिर ये मुल्क मशान कहलाएगा
प्रेमिका से शादी का प्रस्ताव
एक दिन अपनी प्रेमिका से
मैने की शादी की बात
कुछ देर चुप रहने के बाद
उसने दिया मुझे जवाब
करना होगा कांट्रेक्ट साइन
पी के घर ना आवोगे वाइन
शादी की है मेरी दूसरी शर्त
तनख्वाह के दिन
मेरे हाथ होगा तुम्हारा पर्स
जाउंगी पार्टी में कभी मत रोकना
ऐसा गर कर सकते तो
शादी के लिए बोलना
थोड़ी देर तक सर को खुजलाता रहा
इधर-उधर की बातें बनाता रहा
लेकिन मैडम थी टू दि प्वाइंट
बोली क्या सोच रहे हो
ख्यालों में अब कोई
दूसरी खोज रहे हो
मैने कहा जी नहीं
आप सा हसीन दुनिया में कोई नहीं
आप तो परी और हैं अप्सरा
दुनिया में आप सा ना दूसरा
मुर्ख हूं जो अप्सरा को ठुकराउंगा
आपके लिए तो तिहाड़ भी चला जाउंगा
तिहाड़ का नाम सुन थोड़ी खिलखिलाई
यार तुमने तो खूब याद दिलाई
हम दोनों खूब तरक्की करेंगे
अपनी झोली पैसों से भरेंगे
गर तुम मेरे लिए जा सकते हो तिहाड़
वादा है तुमसे बना दूंगी पैसों का पहाड़
पाकर तुमको मैं अपने को धन्य समझूंगी
कभी कभार आकर तिहाड़ में तुमसे मिलूंगी
मैने की शादी की बात
कुछ देर चुप रहने के बाद
उसने दिया मुझे जवाब
करना होगा कांट्रेक्ट साइन
पी के घर ना आवोगे वाइन
शादी की है मेरी दूसरी शर्त
तनख्वाह के दिन
मेरे हाथ होगा तुम्हारा पर्स
जाउंगी पार्टी में कभी मत रोकना
ऐसा गर कर सकते तो
शादी के लिए बोलना
थोड़ी देर तक सर को खुजलाता रहा
इधर-उधर की बातें बनाता रहा
लेकिन मैडम थी टू दि प्वाइंट
बोली क्या सोच रहे हो
ख्यालों में अब कोई
दूसरी खोज रहे हो
मैने कहा जी नहीं
आप सा हसीन दुनिया में कोई नहीं
आप तो परी और हैं अप्सरा
दुनिया में आप सा ना दूसरा
मुर्ख हूं जो अप्सरा को ठुकराउंगा
आपके लिए तो तिहाड़ भी चला जाउंगा
तिहाड़ का नाम सुन थोड़ी खिलखिलाई
यार तुमने तो खूब याद दिलाई
हम दोनों खूब तरक्की करेंगे
अपनी झोली पैसों से भरेंगे
गर तुम मेरे लिए जा सकते हो तिहाड़
वादा है तुमसे बना दूंगी पैसों का पहाड़
पाकर तुमको मैं अपने को धन्य समझूंगी
कभी कभार आकर तिहाड़ में तुमसे मिलूंगी
मौन हैं मनमोहन
सन्न है संसद
मौन हैं मनमोहन
विपक्ष कर रहा
मगरमच्छ सा रूदन
बेहाल जनता
बिलखती सिसकती है
जैसे नागिन अपने ही
बच्चे को डसती है
जनता के स्वर फूटते हैं
चाय के दुकानों पर
नुक्कड़ के मचानों पर
सरकार को गाली हैं देते
विपक्ष को हैं कोसते
लेकिन
मंहगाई पर जनता है लट्टू
जैसे कठियावाड़ी घोड़े का टट्टू
जो खड़े खड़े टाप से मिट्टी है खोदता
जहां है खड़ा उसी को जोतता
महंगाई पर है सरकार का जवाब
इसमें है पड़ोसी मुल्क का हाथ
हम कर ही क्या सकते हैं
हम हैं विवश
पर ओबामा ने किया है आश्वास्त
पड़ोसी को जल्द ही करेंगे ध्वस्त
तब महंगाई काबू में आएगी
इस बार बख्सी नहीं जाएगी
चलेगा महंगाई पर मुकदमा
उसको भी पड़ेगा जेल में रहना
महंगाई को काबू में आने दिजिए
भगवान के लिए तब तक
अपने मुंह को बंद रखिए
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