दांतो की कटकटाहट
कानों से गुजरी
विस्मृत आंखे
एक शख्स पर ठहरी
पांवों को सीने में समेटे
कफन की कथरी
बदन में लपेटे
उसके कानों पर था
हाथों का पहरा
हवाओं के झोंकों ने
उसे बना दिया था बहरा
मौत को दी थी दावत
जिंदगी से की थी बगावत
तापमान की शुन्यता से नहीं
लोगों की शुन्यता से जमा था वो
टूट रहा था उसका संबल
मौत ही थी उसका कंबल
जिसे ओढ़ कर वो आराम पाएगा
बेदर्द जमाने और सर्द हवाओं से
मुक्ति पाएगा
लोगों के रगों में पानी बह रहा है
लोग पल-पल मरते उस
शख्स को देख रहे हैं
उसके अंतिम आह में थी वेदना
भगवान के प्रति संवेदना
कुछ ना मांगा उम्र भर
बस अब एक ही है आस
भगवान बुला ले मुझे अपने पास
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