Saturday, January 8, 2011

घायल

मुख से आह निकल रही सिसकी
ग्रीवा ले रही रुक-रुक हिचकी
वह गिरा धरा पर बिलख रहा
वह मनुज दर्द से तड़प रहा
सर से बह रही रक्त की धरा
लांघ रहे सब कर रहे किनारा
बह मनुज बेसुध और घायल है
पर सब देखने के कायल हैं
निर्ममता निर्दयता का
पर्याय बन गया है मानव
देख कुकृत्य मानव का
शर्मशार हो रहे दानव
भगवान करे इस धरती पर
ऐसे लोग ना आ पाएं
जो देख रहे उस घायल को
जब तक वो लाश ना बन जाए

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